Rumored Buzz on कोकिला-व्रत-कथा

शिवजी की पूजा में सफेद और लाल पुष्‍प के अलावा बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, अष्‍टगंध, धूप और दीपक रखें। इन सभी वस्‍तुओं से पूजा करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें। आप चाहें तो निराहार व्रत रहें और समार्थ्‍य नहीं है तो फलाहार करके भी व्रत रहा जा सकता है।

पूजा के दौरान भगवान शिव को सफेद फूल और माता सती को लाल फूल अवश्य चढ़ाएं।

आप चाहें तो निराहार रहकर इस व्रत को कर सकते हैं। अगर समर्थ नहीं हो तो आप एक समय फलाहार कर सकते हैं।

बिजनेस न्यूजरोल्स रॉयस कार देखने गए तो सेल्समैन ने अपमानित किया, उसी कार को खरीद कर लक्की ड्रॉ में उपहार दे दिया

इस कारण से इस व्रत को कोकिला व्रत का नाम दिया गया क्योंकि देवी सती ने कोयल बनकर हजारों वर्षों तक वहाँ तप किया। फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों की आज्ञानुसार आषाढ़ के एक माह से दूसरे माह व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती के साथ विवाह कर लिया। अतः यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करने वाला माना जाने लगा।

शनि की वक्री चाल इन राशियों के लिए फायदेमंद, क्‍या आपकी राशि भी है इनमें से एक

श्री लम्बोदर स्तोत्रम् (क्रोधासुर कृतम्)

सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।

यह व्रत अविवाहित महिलाओं का सौभाग्य बढ़ाता है।

व्रत करने वाले को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान करना चाहिए। इस दिन गंगा स्‍नान करें तो सबसे अच्‍छा होता है।

साउथ सिनेमास्‍वरा भास्‍कर का मलयालम इंडस्‍ट्री में उत्‍पीड़न के मामलों को देख कचोटा दिल, इशारों में बॉलीवुड पर साधा निशाना

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा गया यह व्रत संपूर्ण सावन में आने वाले व्रतों का आरंभ माना जाता है। इस व्रत में देवी के स्वरूप को कोयल रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि माता सती ने कोयल रूप में भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या के शुभ फल स्वरूप उन्हें पार्वती रूप मिला और जीवनसाथी के रूप में भगवान read more शिव की प्राप्ति होती है।

इस व्रत को निष्ठा और श्रद्धा के साथ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *